Description
पुस्तक संक्षिप्त परिचय :
इतिहास अपने आपको दोहराता है। कहावत पुरानी है, लेकिन अधूरी। उसका आधा हिस्सा अव्यक्त होता है, जो प्रयोग और संदर्भ में अंतर्निहित होता है। इस मुहावरे के प्रयोग का ध्यान करें। इसे चेतावनी के रूप में कहा जाता है। तो अर्थ क्या हुआ? यह कि यदि आपने इतिहास से सीख नहीं ली, तो वह स्वयं को दोहराएगा। जब दोहराएगा तो मूल्य भी मांगेगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक को तैयार किया गया है।
उपलक्ष्य है आजादी का अमृत महोत्सव। यह अवसर उल्लास का तो है ही। साथ ही यह सोचने का भी कि उस पहाड़-सी पीड़ा से हमने क्या सीखा। अन्यथा…।
■ भारत विभाजन की गाथा की तरह यह पुस्तक भी क्रमिक ढंग से ही आकार लेती गई। भारत विभाजन की गाथा के कई आयाम हैं- असंख्य जीवन की हानि, भूगोल की हानि, संस्कृति की हानि, जातिगत विनाश, राजनीतिक पक्ष और सबसे बढ़कर उसे ढाँपने- छिपाने और यहां तक कि उचित ठहराने के प्रयास त्रासदी बहुआयामी है और पीड़ा को देखने, समझने, बताने के भी अनेक आयाम हो सकते हैं। यह पुस्तक यथा शक्ति आयामों को देखती, परखती और इन्हें गूंथते हुए आगे बढ़ती है।
जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रम का भारतीय परिप्रेक्ष्य और क्रम । कहकर भी अनकही रही अंतर्कथाएं। और पीड़ा का वह पर्वत जिन्हें सुविधा की राजनीति ने राई बराबर भी महत्व नहीं दिया। किन्तु प्रथमतः इन तीनों आयामों को चिन्हित करना फिर इनकी व्याख्या में उतरना, उलझना और अंततः कई रुचिकर परन्तु भ्रा
Publisher : Bharath Prakashan ; No of pages 286;
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