Description
अपने उदात्त चरित्र, विलक्षण ज्ञान और बहुमुखी प्रतिभा से सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करनेवाले स्वामी विवेकानन्द की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्म, कला, स्वास्थ्य, सामाजिक सभी क्षेत्रों में स्वामीजी का चिन्तन अद्भुत है। इसलिए रवीन्द्रनाथ ठाकुर कहते हैं कि “भारत को जानना है तो स्वामी विवेकानन्द का अध्ययन कीजिए।”
पराधीन भारत जब आत्म-ग्लानि और आत्म-विस्मृति के जाल में जकड़ा हुआ था, तब भारत को ‘भारत’ से परिचित कराना आवश्यक था | स्वामीजी ने भारत भर भ्रमण करते हुए, स्थान-स्थान पर अपने ओजस्वी और प्रखर वाणी से भारत में राष्ट्रीय चेतना का अलख जगाया। उन्होंने कहा, ‘आनेवाले पचास वर्षों के लिए अपने सभी देवी-देवताओं को उठाकर एक ओर रख दो, और यह जननी जन्मभूमि भारतमाता ही एकमात्र हमारी आराध्य बन जाए। अपना सारा ध्यान इसी एक ईश्वर पर लगाओ, हमारा देश ही हमारा जाग्रत देवता है ।” स्वामीजी के इस आह्वान से भारत में स्वतंत्रता की लहर उत्पन्न हुई। उन्हीं के विचारों की प्रेरणा से साहित्य, विज्ञान, समाज- सुधार और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न गतिमान हुए
Publisher: Vivekanand Kendra Pages:152 ; Hardcover
Author: Nikhil Yadav
About Author : Nikhil Yadav Youth Head , Vivekananda Kendra Uttar Prant. Ph.D. Scholar , JNU, New Delhi.
Reviews
There are no reviews yet.