Description
पुस्तक परिचय :
धर्म जितना ऊँचा है, उतना गहरा है, जितना व्यष्टि केन्द्रित है उतना समष्टि व्यापक है, जितना पुराना है उतना नया है, जितना चिरन्तन है उतना गतिमान है, जितना बहुआयामी है उतना एकाग्र है। वह सर्वभूतहित का अमृतकलश है, जगन्मंगल कल्पवृक्ष है।
Shri Bharati Prakashan ; Paperback;
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