Description
सेवा एक भाव है जो अन्तरात्मा से प्रकट होकर दूसरों के कष्टों का निवारण करता है। यह कहा भी गया है कि ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई’ अर्थात् सेवा में धर्म का भाव निहित हैं। सेवा से मलिनता दूर होती है, परिवार कलह से मुक्त होता है, समाज में विभेद उत्पन्न नहीं होते और राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव सदैव विद्यमान रहता है। अन्ततः संगठन के भाव से ओतप्रोत शक्तिसम्पन्न राष्ट्र का निर्माण होता है। जब-जब इस भाव में शिथिलता आई समाज और राष्ट्र कमजोर हुए। इसीलिए समाज ने “सेवा एक भूषण है” को अंगीकार किया।
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