Description
About the book :
संगठन का मंत्र सहयोग और टीम भावना
– संगठन कौशल – इस विषय पर श्री यशवंत राव केलकर द्वारा दिए गए मार्गदर्शन का संकलन. यशवंत राव जी संघ के स्वयंसेवक और ABVP के विकास मे सक्रीय कार्यकर्ता थे ।
जिस प्रकार कोई समाज अथवा राष्ट्र नागरिकों के बिना नहीं बनता ही संभवतः कोई देश सामाजिक संस्थाओं के बिना भी नहीं चलता। एक समाज के तात्कालिक एवं दूरगामी अस्तित्व में अनेक प्रकार की सामाजिक संस्थाएँ उपयोगी भूमिका निभाती हैं। समाज के प्रति व्यक्ति का एक दायित्व होता है। व्यक्ति प्राय: अनुभव करता है कि दायित्व निर्वहन सामाजिक संस्था द्वारा अधिक प्रभावी होता है इसलिए संस्थाएँ जन्म लेती हैं। सार्वजनिक जीवन में संस्थाओं का प्रारंभ होना जितनी सामान्य बात है उतनी ही सामान्य है उनकी तालाबंदी। यदि संस्थाएँ बंद न भी हों तो वे सरलता से प्रभावी नहीं बन पातीं। वे प्रभावी बन जाएँ, उनका प्रभाव निरंतर बढ़ता रहे, वे अपने उद्देश्य से न भटक और आंतरिक झगड़ों-तनावों मुक्त रहें, यह और भी कठिन होता है।
एक प्रभावी सफल एवं स्वस्थ संस्था के लिए मुख्यतः तीन शर्तें लागू होती हैं:
1. स्पष्ट उद्देश्य, 2. योग्य कार्यकर्ता, 3. सामूहिकता की कार्यपद्धति। इनमें से प्रथम पर्याप्त की श्रेणी में आती है और शेष दो अनिवार्य की श्रेणी तीनों का महत्त्व भी बराबर नहीं होता।
दूसरी पहली से अधिक महत्त्वपूर्ण होती है और तीसरी दूसरी से अधिक। तीनों शर्तों में प्रथम का परोक्ष व शेष दोनों का प्रत्यक्ष संबंध व्यक्तियों से होता है। कागज पर लिखे उद्देश्य कुछ भी हों पर संस्था में सक्रिय कार्यकर्ताओं को उद्देश्य की स्पष्टता होनी चाहिए। उद्देश्य कुछ भी हों और संस्था में सक्रिय कार्यकर्ताओं को उद्देश्य की स्पष्टता भी हो पर उसकी प्राप्ति हेतु संस्था के पास ‘योग्य’ ‘कार्यकर्ता’ न हों तो स्या प्रगति नहीं कर सकती। उद्देश्य की स्पष्टता हो, कार्यकर्ता भी योग्य परंतु उनमें सामूहिकता (टीम) की भावना न हो तो संस्था प्रभावी नहीं पाती।
ISBN : 978-93-91154-03-5 ; Pages : 184 ; Paperback ; Suruchi Prakashan ; Hindi


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