Description
अंग्रेज शासक लगातार यही प्रचार करते रहे कि मैक्समूलर तो वेदों का महान विद्वान और हिन्दू धर्म तथा शुभचिंतक है। वे इस कथन की पुष्टि इस बात से करते हैं कि उसने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में 1846 से 1900 तक वेदों और हिन्दू धर्मशास्त्रों पर एक विशाल साहित्य स्वयं लिखा तथा अपने जैसे सहयोगी लेखकों लिखवाकर उसे स्वयं संपादित किया।
मैक्समूलर ने अपनी बहुअर्थी लेखनी की आड़ में आजीवन वेदों को विरूपित किया, फिर भी वह अपने को हिन्दू धर्म का हितैषी होने का ढोंग रचता रहा।उसने वेदों का विकृतीकरण क्या, क्यों और कैसे किया ? इन्हीं कुछ प्रश्नों को यहां संक्षेप में विश्लेषण किया जाएगा
Publisher Suruchi
जगदीश प्रसाद शर्मा – :
डॉ. के. वी. पालीवाल द्वारा पुस्तक में असंख्य प्रमाणों सहित इस सत्य को उजागर किया है कि मैक्समूलर ने ईसाईयत के प्रचार तथा हिन्दुओं के धर्मांतरण के लिए वेदों की विकृत व्याख्या की । उसे वैदिक संस्कृत का तनिक भी ज्ञान नहीं था, लौकिक संस्कृत से मनगढ़ंत अर्थ खोज कर वेदों को विकृत स्वरूप में प्रस्तुत किया । वह एक बहरुपिया था जो हिन्दू हितेषी होने का ढोंग करता रहा । लेखक ने अकाट्य तर्कों तथा प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध कर दिया।