लोकदेवता श्री हनुमान Lokdevata Shree Hanuman

हनुमच्चरित्र पर केन्द्रित इस शोध-ग्रन्थ में साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं धार्मिक इतिहास से सम्बद्ध तिथिक्रम के निर्धारण के लिए प्रचुर सामग्री सुलभ हुई है। अतएव, डॉ० मागध का यह ग्रन्थ तात्त्विक शोध (‘फण्डामेण्टल रिसर्च’) की दृष्टि से भी अपना विशिष्ट मूल्य आयत्त करता है।

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लोकमान्य देवता हनुमान् के व्यक्तित्व विवेचन से सम्बद्ध ‘लोकदेवता श्रीहनुमान्’ नाम की यह शोधकृति प्रतिभाप्रौढ़ शोधमनीषी डॉ० कृष्णनारायण प्रसाद ‘मागध’ की शोध-मनीषा के उत्कर्ष की परिचायिका है। डॉ० मागध का शोध-सातत्य और उसके ग्रन्थाकार प्रकाशन-सातत्य का सौभाग्य-संयोग निश्चय ही स्पृहणीय है। डॉ० मागध की यह शास्त्र – सिक्त महत्कृति इनकी बहुश्रुतता एवं प्रगाढ पाण्डित्य की समुद्घोषिका
ग्रन्थ के परिशिष्ट में हनुमान् की माता (गौतम अहल्या की पुत्री) अजंना का चरित- विचारनीय बना है और फिर आदि शंकराचार्य रचित ‘हनुमत्पंचरत्न’ स्तोत्र तथा आनन्द रामायण से उद्धृत ‘हनुमत्कवच’ को सम्मिलित किया गया है। इस कृति में प्रायः वैदिक परम्परा के ही ग्रन्थों को आधार बनाया गया है, जिनमें वाल्मीकीय रामायण को शीर्षस्थानीय महत्त्व प्राप्त हुआ है। प्रत्यासत्या महाभारत एवं विभिन्न गौण-प्रमुख रामायणें भी सन्दर्भित हुई हैं और प्रसंगवंश एतद्विषयक जैन-बौद्ध ग्रन्थ भी उपजीव्य बने हैं। इस विवृति से स्पष्ट है। कि इस कृति में हनुमच्चरित्र की विराट अवतारणा हुई। है। इस क्रम में शोधश्रमी लेखक ने शताधिक ग्रन्थों को अपने शोध का आधार बनाया है, जिनमें विभिन्न रामायणों के अतिरिक्त रामायण पर आधृत ग्रन्थ भी सन्दर्भ-स्त्रोत के रूप में आकलित हुए हैं। इससे डॉ० मागध का यथाप्रस्तुत शोध ततोऽधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय बन गया है।
हनुमच्चरित्र पर केन्द्रित इस शोध-ग्रन्थ में साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं धार्मिक इतिहास से सम्बद्ध तिथिक्रम के निर्धारण के लिए प्रचुर सामग्री सुलभ हुई है। अतएव, डॉ० मागध का यह ग्रन्थ तात्त्विक शोध (‘फण्डामेण्टल रिसर्च’) की दृष्टि से भी अपना विशिष्ट मूल्य आयत्त करता है।

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