Description
पुस्तक परिचय :
भारत में ईसावाद का अकबर के दरबार से प्रारम्भ, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उसकी भूमिका, और फिर आगे चलते हुए पूर्वोत्तर के सभी सातों राज्यों में धीरे-धीरे ईसावाद का प्रवेश और उसका समाज और संस्कृति पर विध्वंसक प्रभाव—लेखक ने एक भारत में ईसावाद की यात्रा का एक व्यापक वृत्त खींचा है। साथ ही पुस्तक ये भी प्रश्न उठाती है कि क्या हमारे संविधान के तहत अल्पसंख्यकों को दिए गए विशेष अधिकारों का दुरुप्योग नहीं हो रहा है? या फिर ये मान्यता कि संविधान समाज में अपने “मजहब” को प्रचारित करने की खुली छूट—खुली प्रतिस्पर्धा की छूट प्रदान करता है? और यदि ऐसा है, तो फिर क्या एक लोकतंत्र में ये अपेक्षित है?
शैलेन्द्र कुमार की ईसावाद और पूर्वोत्तर भारत का सांस्कृतिक संहार एक ऐसे विषय को लेती है, जिसके बारे में बहुधा लोग जानते तो हैं, किन्तु उन्हें ये ध्यान नहीं आता कि पूर्वोत्तर भारत में ईसावाद ने कैसे अपने पैर पसारे और वहाँ की संस्कृति को नष्ट कर दिया।
978-1942426998 ; Garuda Prakashan ; Author : Shailendra Kumar ; Pages :283 ; Paperback
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