Description
ख़िलाफ़त आंदोलन (1919-1924) भारत के मुस्लिमों के बीच ओटोमन तुर्की साम्राज्य के पतन और प्रथम विश्व युद्ध के समापन चरणों के दौरान तुर्की ख़लीफ़ा के लिए खतरे को संदर्भित करता है। इस्लाम के दीनी ग्रंथों का आधार और ऐतिहासिक उदाहरणों के बल पर खिलाफत आंदोलन एक देशव्यापी अखिल इस्लामी आंदोलन बन गया। हालाँकि सौ साल बीत चुके हैं, लेकिन इसके सेटीक स्वरूप और महत्त्व के बारे में कई भ्रांतियाँ हैं। खिलाफत आंदोलन को चलाने वाला विचार आज भी जीवित है। यह जो सबक प्रदान करता है, उसे केवल जोखिम पर ही अनदेखा किया जा सकता है।
लेखक, डॉ. श्रीरंग गोडबोले इस्लाम और इस्लामी इतिहास के अध्येता हैं। उन्होंने खिलाफत आंदोलन के आसपास के झूठे विमर्श को दूर किया है और उसके असली रंग को उजागर कर दिया है।
Reviews
There are no reviews yet.