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भारतवर्ष के आक्रान्ताओं की कलंक कथाएं Bharatvarsh Ke Aakrantaon Ki Kalank Kathayen

सिकंदर और उसके बाद 712 ई. से लेकर 1947 तक भारतवर्ष के लुठेरों की काली करतूतों के कारण भारत आअँधेरे के गिरफ्त में छटठपटाता रहा, लुठता रहा। इन्होंने भरतीय संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं को नष्ट किया, हमारी शिक्षा व्यवस्था, उद्योग, व्यापार, कलाओं और जीवनमूल्यों पर निरंतर प्रहार करके भारतवर्ष की समृद्धि और सामर्थ्य को खंडित किया | यह पुस्तक इन क्रूरों और आततायियों की नृशंसता और पाशविकता की झलक मात्र देती है, जो हर भारतीय को भीतर तक उद्वेलित कर देगी कि हमारे पूर्वजों ने इन नरपिशाचों के हाथों कितने दुःख और कष्ट सहे.

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Description

About the book : 

प्रस्तुत पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ ऐसे दुर्दांत आक्रांताओं के कुत्सित कुकृत्यों पर प्रकाश डालती है | महमूद गजनवी के आक्रमण से पहले भारत में सूफियों को छोड़कर इसलाम का शायद ही कोई अनुयायी रहा हो | लेकिन सैयद सालार मसूद गाजी के आक्रमण के समय, सलल्‍्तनत काल तथा मुगल काल में धर्म-परिवर्तन का नंगा नाच किया गया | धर्म-परिवर्तन न करने पर जजिया कर लादा गया, जो कि मुगल काल तक चलता रहा | इस कालखंड में भारतीय संस्कृति को पददलित करने का हरसंभव प्रयास किया गया। इसमें नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय जलाने से लेकर अनेक मह्त्त्वपूर्ण मंदिरों व श्रद्धाकेंद्रों को ध्वस्त करना प्रमुख था। इन्हें न केवल ध्वस्त किया गया, बल्कि इन पर उन्होंने अपने उपासना-स्थलों का निर्माण भी किया |

सिकंदर और उसके बाद 712 ई. से लेकर 1947 तक भारतवर्ष के लुठेरों की काली करतूतों के कारण भारत आअँधेरे के गिरफ्त में छटठपटाता रहा, लुठता रहा। इन्होंने भरतीय संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं को नष्ट किया, हमारी शिक्षा व्यवस्था, उद्योग, व्यापार, कलाओं और जीवनमूल्यों पर निरंतर प्रहार करके भारतवर्ष की समृद्धि और सामर्थ्य को खंडित किया | यह पुस्तक इन क्रूरों और आततायियों की नृशंसता और पाशविकता की झलक मात्र देती है, जो हर भारतीय को भीतर तक उद्वेलित कर देगी कि हमारे पूर्वजों ने इन नरपिशाचों के हाथों कितने दुःख और कष्ट सहे.

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